डॉ. संजय दानी के छत्‍तीसगढ़ी गजल

होगे फ़ागुन हा सर पे सवार ‘
जोहार ले जोहार ले जोहार।

नरवा खलखल हांसत है,
नवा नवा फ़ूटत है धार्।(जोहार ले – – – –

बरदी के सुत गे गोसैया,
सन्सो में हवय खेत खार। जोहार ले – – – –

दिल हा चना के जवान है,
औ राहेर लगत हे कचनार। जोहार ले- – – –

धान के कोनो पुछैया नाही,
औ खड़े है चना के खरीदार। जोहार ले – – –

अमली के सा्ड़ी हा सरकत है,
औ लहकत हे आमा के डार। जोहार ले

कोड़ही मन हा फ़ाग सुनावत।
गोल्लर मन फ़ांदव दीवार । जोहार ले- – –

फ़गुआ पी के सूते है,
औ होगे मन्टोरा फ़रार। जोहार ले – – –

बिछिया नथनी करधन पहीने,
बुधियारिन घलोक हे तैयार। जोहार ले – – –

पपची देहरौरी चखा दे बहीनी,
देवारी के गुझिया ला टार। जोहार ले – – –

रंग गुलाल लगावन कैसे’
अपन भाटों के मुंह ला फ़ार। जोहार ले – – –

होली के खरही जलाये बर ,
हिरदय के लकड़ी ला बार। जोहार ले – – –

दिल के गांठ ला खोलव गा,
यही है होली के सार। जोहार ले – – –

डॉ. संजय दानी

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2 Thoughts to “डॉ. संजय दानी के छत्‍तीसगढ़ी गजल”

  1. संजय भाई , सुग्घर ग़ज़ल लिखे बर बधाई.

  2. अरूण भाई ला परनाम।

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